शादीशुदा लड़कियों में क्यों बढ़ रही है हिंसक प्रवृत्ति?

शादीशुदा लड़कियों में क्यों बढ़ रही है हिंसक प्रवृत्ति?

बेटियों की परवरिश पर उठने लगे सवाल

तेजी से बदलते समाज में लाइफस्टाइल भी मॉडर्न होती जा रही है। इसी के साथ हमारे सोच-विचार भी बदल रहे हैं। लेकिन इन सब के बीच अगर कुछ बदलाव समाज को खटक कर रहा है तो वो है, युवाओं में आक्रमकता का बढ़ना, खासतौर पर लड़कियों में। ऐसा इसलिए कि  हाल के दिनों में अखबारों में कई ऐसी आपराधिक खबरें सुर्खियों में हैं जिसमें या तो किसी नई नवेली दुल्हन ने चाकू से अपने शौहर पर वार कर दिया या अपने प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या कर दी।  ऐसी खबरें लोगों के लिए चिंता का विषय बन गईं हैं।  कई परिवार यह महसूस कर रहा है कि शादी के बाद उनकी लड़कियों का व्यवहार असामान्य और कभी-कभी हिंसक हो गया है। ऐसा क्यों हो रहा है?  क्या इसमें परवरिश की कोई भूमिका है या यह समाज में बदलते मूल्यों और दबावों का परिणाम है?
क्यों बदल रहा बेटियों का स्वभाव?
शादी के बाद किसी भी महिला की जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं। नए परिवार में ढलना, रिश्तों को संभालना और खुद के लिए समय निकालना एक बड़ा संघर्ष हो सकता है।  अगर परवरिश के दौरान बेटियों को मानसिक और भावनात्मक संतुलन बनाने की शिक्षा नहीं दी गई,  तो यह स्थिति और जटिल हो जाती है।  कुछ अन्य शोध बताते हैं कि जब परिवार में विवाह संबंधों में हिंसा होती है तो इसका असर सिर्फ बच्चे पर ही नहीं बल्कि मां के मानसिक संतुलन और उनके माता-पिता के व्यवहार पर भी पड़ता है।  ऐसे माहौल में बड़ी हुई लड़कियों में भविष्य में आक्रामक प्रवृत्ति विकसित हो सकती है।
परवरिश में हो रही ये बड़ी गलतियां
कई माता-पिता अपनी बेटियों को स्वतंत्र निर्णय लेने का मौका नहीं देते।  इससे उनका आत्मविश्वास कमजोर हो जाता है और शादी के बाद जब उन्हें अचानक नई जिम्मेदारियों का सामना करना पड़ता है, तो वे तनावग्रस्त हो जाती हैं।
 भावनात्मक संतुलन की शिक्षा देना पेरेंटिंग का जरूरी हिस्सा है। लेकिन अगर बेटियों को बचपन से ही भावनाओं को संभालना नहीं सिखाया गया तो यह शादी के बाद कुछ गलत निर्णय ले सकती हैं।
 कुछ माता-पिता अपनी बेटियों को हर समस्या से बचाने की कोशिश करते हैं।  यह आदत बेटियों को जीवन के संघर्षों के प्रति कमजोर बना देती है और शादी के बाद छोटी-छोटी बातों पर भी वे कठोर प्रतिक्रिया देने लगती हैं।
 बदलते जमाने के साथ  समाज में भी मूल्यों का परिवर्तन हो रहा है।  महिलाएं आज आत्मनिर्भर और सशक्त बन रही हैं लेकिन कभी-कभी यह सशक्तिकरण अतिवाद का रूप ले लेता है, जहां रिश्तों को निभाने की भावना कमजोर हो जाती है।
क्या है समाधान?
बातचीत खुली रखें- माता-पिता को अपनी बेटियों से खुलकर बात करनी चाहिए।  उन्हें शादी के बाद आने वाली जिम्मेदारियों और जीवन की चुनौतियों के लिए मानसिक रूप से तैयार करना चाहिए।
रिश्तों को महत्व देना सिखाएं
बदलते समाज में रिश्तों की अहमियत को समझाना बहुत जरूरी है।  बेटियों को सिखाएं कि हर रिश्ते में समझौता और धैर्य की जरूरत होती है।  याद रखें कि बेटियों की परवरिश केवल अच्छी शिक्षा और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बना देना नहीं है, उन्हें यह भी सिखाना जरूरी है कि मानसिक और भावनात्मक रूप से मजबूत किस तरह बनना है और यह क्यों जरूरी है।  अगर पेरेंटिंग में इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखा जाए, तो शादी के बाद उनकी जिंदगी और भी खूबसूरत बन सकती है।

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