बिहार के सूची संशोधन के खिलाफ महुआ मोइत्रा ने दायर की सुप्रीम कोर्ट में याचिका

एसआईआर को बताया लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा

बिहार के सूची संशोधन के खिलाफ महुआ मोइत्रा ने दायर की सुप्रीम कोर्ट में याचिका

तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। यह याचिका चुनाव आयोग (ईसीआई) की ओर से बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर है। मोइत्रा ने इस प्रक्रिया को लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए सीधा खतरा बताया है। उनका आरोप है कि चुनाव आयोग सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के इशारे पर काम कर रही है। साथ ही यह लाखों मतदाताओं, खासकर प्रवासी और गरीब मतदाताओं को मताधिकार से वंचित करने की कोशिश है।

निज संवाददाता : तृणमूल कांग्रेस की सांसद  महुआ मोइत्रा  ने  सुप्रीम कोर्ट  में एक याचिका दायर की है। यह याचिका चुनाव आयोग (ईसीआई) की ओर से बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर है। मोइत्रा ने इस प्रक्रिया को लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए सीधा खतरा बताया है। उनका आरोप है कि चुनाव आयोग सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के इशारे पर काम कर रही है। साथ ही यह लाखों मतदाताओं, खासकर प्रवासी और गरीब मतदाताओं को मताधिकार से वंचित करने की कोशिश है।
महुआ मोइत्रा का कहना है कि अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस ममता बनर्जी के नेतृत्व में लोकतंत्र के लिए एक बड़े खतरे की ओर इशारा कर रही है। यह खतरा बिहार में चुनाव आयोग की ओर से शुरू किया गया नया विशेष गहन पुनरीक्षण है। इसकी योजना बंगाल में और उसके बाद अन्य राज्यों में भी शुरू करने की है। उन्होंने आगे कहा कि मैंने इस पर पिछली रात सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है और यह उल्लंघनकारी है।
मोइत्रा का तर्क है कि यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के साथ-साथ अनुच्छेद 3, 325 और 326 का उल्लंघन करती है। उन्होंने यह भी कहा कि यह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1960 और निर्वाचक पंजीकरण नियम के भी खिलाफ है। उनके अनुसार, एआईआर  में पात्रता के प्रमाण के रूप में 11 नए दस्तावेजों को शामिल किया गया है। इनमें आधार या राशन कार्ड जैसे आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले आईडी शामिल नहीं हैं।
मोइत्रा ने कहा कि अब आपके जन्म प्रमाण पत्र के अलावा कोई अन्य दस्तावेज जैसे मैट्रिक प्रमाण पत्र या पीएसयू  कार्ड आपको जन्मस्थान नहीं बताता है। उन्होंने चेतावनी दी कि कुछ मामलों में माता-पिता के जन्मस्थान को स्थापित करने की आवश्यकता से बिहार में ढाई से तीन करोड़ लोग मताधिकार से वंचित हो जाएंगे। इसे जल्द ही बंगाल में भी लागू किया जा सकता है। मोइत्रा ने आगे कहा कि यह पूरी तरह से गरीब प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों के खिलाफ है। उनके पास इतने कम समय में फॉर्म डाउनलोड करने और उन्हें फिर से अपलोड करने का कोई अवसर नहीं होगा। मेरा मतलब है, यह सब एक पागलपन भरा अभ्यास है और इसका एकमात्र लक्ष्य मतदाताओं को मताधिकार से वंचित करना है।
महुआ मोइत्रा ने यह भी कहा कि चुनाव आयोग अपने लक्ष्य से भटक गई है। उन्होंने कहा कि ऐसा करने के बजाय भारत के चुनाव आयुक्त ने खुद को बीजेपी का हाथ बना लिया है। यह बहुत शर्म की बात है। सूत्रों के अनुसार, मोइत्रा की याचिका अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई है। जो कि चुनाव आयोग को अन्य राज्यों में भी इसी तरह के निर्देश जारी करने से रोकने की मांग करती है। एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने भी इसी तरह की याचिका दायर की है। इसमें चेतावनी दी गई है कि इस अभ्यास से मनमाने ढंग से और बिना किसी उचित प्रक्रिया के लाखों नाम मतदाता सूची से हटाए जा सकते हैं।
दूसरी तरफ, पुनरीक्षण का बचाव करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा कि बिहार के लगभग हर राजनीतिक दल ने मतदाता सूची में गलतियों के बारे में चिंता जताई थी। इसी वजह से चुनाव आयोग को कार्रवाई करनी पड़ी। उन्होंने जोर देकर कहा कि जो लोग 2003 की मतदाता सूची में हैं। उन्हें जन्म से संबंधित कोई दस्तावेज जमा करने की जरूरत नहीं है। लेकिन जिनका जन्म 1987 के बाद हुआ है। उन्हें माता-पिता के जन्मस्थान का प्रमाण देना होगा। वहीं जिनका जन्म 2004 के बाद हुआ है। उन्हें दोनों माता-पिता का प्रमाण देना होगा।
चुनाव आयोग का कहना है कि यह अभ्यास अयोग्य और गैर-निवासी मतदाताओं को हटाने के लिए है। इनमें अवैध अप्रवासी भी शामिल हैं। यह पुनरीक्षण 24 जून को शुरू हुआ और 25 जुलाई तक चलेगा। इसे बिहार भर में एक लाख से अधिक बूथ-स्तरीय अधिकारियों की ओर से किया जा रहा है। चुनाव आयोग का कहना है कि मतदाता सूची में सुधार करने के लिए यह जरूरी है। उनका कहना है कि इससे फर्जी वोटिंग रोकने में मदद मिलेगी। लेकिन विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार गरीब और पिछड़े लोगों को वोट देने से रोकना चाहती है।
 
 
 
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