नई बजटिंग प्रणाली से होगा मध्यप्रदेश का सर्वांगीण विकास
शून्य आधारित बजटिंग और त्रिवर्षीय रोलिंग बजट लागू करने वाला पहला राज्य बनेगा मध्यप्रदेश
निवेश, रोजगार और सामाजिक न्याय पर रहेगा विशेष फोकस
भोपाल : मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में मध्यप्रदेश औद्योगिकीकरण और विकास की नई ऊँचाइयों की ओर बढ़ रहा है। प्रदेश सरकार का ध्यान केवल आर्थिक वृद्धि पर ही नहीं, बल्कि रोज़गार सृजन, आधारभूत संरचना निर्माण और सामाजिक न्याय पर भी केंद्रित है। इसी कड़ी में सरकार ने अगले 5 वर्षों में प्रदेश के बजट को दोगुना करने का लक्ष्य तय किया है, जिससे निवेश और जनकल्याणकारी योजनाओं को गति मिलेगी। साथ ही प्रत्येक विभाग के बजट पर अनुशासन और पारदर्शिता सुनिश्चित करने की भी महत्वपूर्ण पहल की गई है।
शून्य आधारित बजटिंग और रोलिंग बजट की शुरुआत
प्रदेश सरकार ने वित्तीय अनुशासन और दीर्घकालिक विकास की ठोस रणनीति अपनाते हुए शून्य आधारित बजटिंग (Zero Based Budgeting) और त्रिवर्षीय रोलिंग बजट प्रणाली लागू करने का निर्णय लिया है। उप मुख्यमंत्री एवं वित्त मंत्री श्री जगदीश देवड़ा ने कहा कि यह पहल “विकसित मध्यप्रदेश 2047” की परिकल्पना को साकार करने की दिशा में एक मजबूत आधार बनेगी और यह अन्य राज्यों के लिए भी आदर्श मॉडल साबित होगी।
श्री देवड़ा ने कहा, “शून्य आधारित बजटिंग और त्रिवर्षीय रोलिंग बजट से योजनाओं का ठोस मूल्यांकन होगा और प्रत्येक खर्च को समाज की आवश्यकताओं तथा राज्य की प्राथमिकताओं से सीधे जोड़ा जा सकेगा। यह कदम विकसित भारत तथा विकसित मध्यप्रदेश 2047 की दिशा में सबसे मजबूत आधारशिला सिद्ध होगा।”
क्यों है यह पहल महत्वपूर्ण?
अब तक अधिकांश राज्य पारंपरिक बजट पद्धति अपनाते आए हैं, जिसमें पिछले वर्षों के व्यय को आधार बनाया जाता था। इसके विपरीत, जीरो बेस्ड बजटिंग में हर योजना को शून्य से शुरू करके उसकी प्रासंगिकता सिद्ध करनी होगी। अप्रभावी योजनाएँ स्वतः समाप्त होंगी और संसाधनों का सदुपयोग संभव होगा।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका और ब्रिटेन सहित कई देशों ने इस बजट पद्धति से शासन व्यवस्था में गुड गवर्नेंस और वित्तीय अनुशासन (फाइनेंशियल डिसिप्लिन) को सुदृढ़ किया है। अब मध्यप्रदेश भारत में इस दिशा में अग्रणी राज्य बन रहा है।
त्रिवर्षीय रोलिंग बजट – फॉरवर्ड लुकिंग दृष्टिकोण
रोलिंग बजट प्रणाली के अंतर्गत 2026-27, 2027-28 और 2028-29 के लिए बजट तैयार किया जाएगा। हर वर्ष इसकी समीक्षा कर नए अनुमान जोड़े जाएंगे। इससे योजनाएँ हमेशा अग्रदृष्टि (forward looking) वाली होंगी और अल्पकालिक दबाव से मुक्त होकर दीर्घकालिक विकास को गति देंगी। विशेषज्ञों ने इस मॉडल को कॉर्पोरेट जगत में पहले से सफल माना है और राज्य शासन में इसका प्रयोग दूरदर्शिता का प्रतीक बताया है।
वित्तीय अनुशासन और सामाजिक न्याय
वित्त विभाग ने स्पष्ट किया है कि अनुसूचित जाति उपयोजना के लिए न्यूनतम 16% और अनुसूचित जनजाति उपयोजना के लिए न्यूनतम 23% बजट सुनिश्चित किया जाएगा। वेतन, पेंशन और भत्तों की गणना में पारदर्शिता के लिए नई गाइडलाइन लागू होंगी। साथ ही, ऑफ-बजट व्यय और केंद्र प्रायोजित योजनाओं की वित्तीय जवाबदेही भी अब राज्य बजट में समाविष्ट की जाएगी। यह व्यवस्था वित्तीय अनुशासन को मजबूत करेगी और जनता का विश्वास बढ़ाएगी।
राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में महत्व
देश के अधिकतर राज्य अभी भी पारंपरिक बजट प्रणाली पर निर्भर हैं। ऐसे में मध्यप्रदेश का निर्णय वित्तीय सुधारों की दिशा में गेम-चेंजर माना जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह प्रयोग सफल होता है तो आने वाले वर्षों में केंद्र और अन्य राज्य भी इस पद्धति को अपनाने को प्रेरित होंगे।