सरकार राज्यपालों की मर्जी पर नहीं चल सकती : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि निर्वाचित सरकारें राज्यपालों की मर्जी पर नहीं चल सकतीं|
नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि निर्वाचित सरकारें राज्यपालों की मर्जी पर नहीं चल सकतीं| अगर कोई बिल राज्य की विधानसभा से पास होकर दूसरी बार राज्यपाल के पास आता है, तो राज्यपाल उसे राष्ट्रपति के पास नहीं भेज सकते| संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास चार विकल्प होते हैं- बिल को मंजूरी देना, मंजूरी रोकना, राष्ट्रपति के पास भेजना या विधानसभा को पुनर्विचार के लिए लौटाना| लेकिन अगर विधानसभा दोबारा वही बिल पास करके भेजती है, तो राज्यपाल को उसे मंजूरी देनी होगी|
सीजेआई बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने कहा कि अगर राज्यपाल बिना पुनर्विचार के ही मंजूरी रोकते हैं, तो इससे चुनी हुई सरकारें राज्यपाल की मर्जी पर निर्भर हो जाएंगी| कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को यह अधिकार नहीं है कि वे अनिश्चितकाल तक मंजूरी रोककर रखें| बेंच में सीजेआई के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पी एस नरसिम्हा और ए एस चंदुरकर शामिल हैं| पांच जजों वाली बेंच गुरुवार को लगातार तीसरे दिन भारत के राज्यपाल और राष्ट्रपति की तरफ से बिल को मंजूरी, रोक या रिजर्वेशन मामले की सुनवाई जारी रखेगी|
केंद्र ने कहा- राज्यपाल को पोस्टमैन नहीं बनाया जा सकता सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि राज्यपाल को केवल पोस्टमैन की भूमिका में नहीं रखा जा सकता| उनके पास कुछ संवैधानिक अधिकार हैं और वे राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त होते हैं| वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने केंद्र की दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि अगर राज्यपाल को यह अधिकार है, तो फिर राष्ट्रपति भी केंद्र सरकार के बिलों पर मंजूरी रोक सकते हैं| इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि संविधान की व्याख्या राजनीतिक परिस्थितियों को देखकर नहीं की जाएगी|
जस्टिस नरसिम्हा बोले- संविधान एक जीवंत दस्तावेज है जस्टिस नरसिंहा ने कहा कि राज्यपाल की शक्तियों की व्याख्या सीमित दायरे में नहीं की जा सकती| संविधान एक जीवंत दस्तावेज है और उसकी व्याख्या समय के अनुसार होनी चाहिए| उन्होंने कहा कि राज्यपाल पहले बिल को संशोधन के लिए लौटा सकते हैं और अगर विधानसभा संशोधन कर देती है, तो राज्यपाल बाद में मंजूरी भी दे सकते हैं|