महाबलीपुरम का शोर मंदिर,

जहां एक साथ होते हैं भगवान शिव-विष्णुजी के दर्शन

महाबलीपुरम का शोर मंदिर,

कटे हुए पत्थरों और ग्रेनाइट ब्लॉकों से बना यह मंदिर पिरामिडनुमा कुटीना-प्रकार की मीनार के साथ अपनी अनूठी बनावट को दिखाता है|


 
नयी दिल्ली - भगवान शिव का प्रिय माह सावन अब अंतिम पड़ाव की ओर है| देशभर के शिव मंदिरों में ‌‘हर हर महादेव‌’ और ‌‘बोल बम‌’ की गूंज सुनाई दे रही है| तमिलनाडु के महाबलीपुरम में स्थित ‌‘शोर मंदिर‌’ ऐसा ही एक अनूठा तीर्थस्थल है, जहां आस्था, इतिहास और आश्चर्य का अद्भुत संगम है| 8वीं शताब्दी में बना यह मंदिर भगवान शिव (हर) और भगवान विष्णु (हरि) को समर्पित है| समुद्र तट पर बने इस मंदिर की भव्यता और द्रविड़ वास्तुकला इसे विश्व प्रसिद्ध बनाती है| तमिलनाडु पर्यटन विभाग के अनुसार, शोर मंदिर दक्षिण भारत के सबसे प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है| इसे ‌‘समुद्र तट का मंदिर‌’ भी कहा जाता है| पल्लव वंश के राजा राजसिम्हा (नरसिंहवर्मन द्वितीय) के शासनकाल में निर्मित यह मंदिर द्रविड़ वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है| मंदिर परिसर में तीन गर्भगृह हैं, जिसमें मध्य में भगवान विष्णु का मंदिर और दोनों ओर भगवान शिव के मंदिर हैं| कटे हुए पत्थरों और ग्रेनाइट ब्लॉकों से बना यह मंदिर पिरामिडनुमा कुटीना-प्रकार की मीनार के साथ अपनी अनूठी बनावट को दिखाता है|
शोर मंदिर की कहानी भी कम रोचक नहीं है| यह मंदिर सालों रेत के नीचे दबा था| साल 2004 की विनाशकारी सुनामी, जिसने तटीय क्षेत्रों को तहस-नहस कर दिया, फिर भी इस मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकी| माना जाता है कि यह मंदिर मार्को पोलो के वर्णित सात पैगोडा में से एक है| ऐसी मान्यता है कि इस तट पर बने सात मंदिरों में से छह अभी भी समुद्र में डूबे हुए हैं और शोर मंदिर इस श्रृंखला का अंतिम बचा हिस्सा है| यूनेस्को ने 1984 में इसे विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया| पल्लव राजाओं द्वारा 7वीं और 8वीं शताब्दी में बनाए गए इस मंदिर समूह में रथों के आकार के मंदिर, गुफा अभयारण्य और ‌‘गंगा अवतरण‌’ जैसी नक्काशी शामिल हैं|

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