देव दीपावली : आलोक, आस्था और आध्यात्मिक एकता का प्रतीक
निज संवाददाता : कार्तिक पूर्णिमा की चांदनी रात में जब गंगा तट पर असंख्य दीपक जल उठते हैं तब ऐसा लगता है मानो देवता स्वयं पृथ्वी पर उतर आए हों। यही वह दिन है जिसे हम देव दीपावली के नाम से जानते हैं—“देवताओं की दीपावली”, जो हर वर्ष दिवाली के पंद्रह दिन बाद मनाई जाती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। देवताओं ने उनके इस विजय उत्सव पर दीप प्रज्वलित कर आनंद मनाया था। इसीलिए यह तिथि “त्रिपुरारी पूर्णिमा” के नाम से भी जानी जाती है।
यह पर्व अंधकार पर प्रकाश, अधर्म पर धर्म और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का प्रतीक है।
काशी : देव दीपावली का दिव्य केंद्र
देव दीपावली की सबसे भव्य झलक देखने को मिलती है वाराणसी में। दशाश्वमेध, राजघाट, अस्सी और पंचगंगा घाट पर लाखों दीप जलाकर श्रद्धालु गंगा को नमन करते हैं। गंगा आरती के स्वर, भजन, और दीपों की झिलमिल रोशनी से पूरा शहर “देवताओं की नगरी” में बदल जाता है। गंगा में बहते दीपक मुक्ति, शांति और ईश्वर के प्रति समर्पण का प्रतीक बन जाते हैं।
पुरी के श्रीजगन्नाथ मंदिर में देव दीपावली का विशेष आयोजन
पुरी, जिसे “श्रीक्षेत्र” कहा जाता है, देव दीपावली के अवसर पर भक्ति और प्रकाश का अद्भुत संगम बन जाता है।
विशेष पूजा और दीपदान
श्रीजगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की विशेष आरती की जाती है। सिंहद्वार और बड़दांडी मार्ग को दीपमालाओं से सजाया जाता है।
त्रिपुरारी श्रृंगार एवं महाप्रसाद
भगवान जगन्नाथ को इस दिन त्रिपुरारी श्रृंगार में सजाया जाता है। भक्तजन ओडिशी संगीत, कीर्तन और महाप्रसाद के साथ उत्सव मनाते हैं।
समुद्र तट पर दीपोत्सव
पुरी के समुद्र किनारे हजारों श्रद्धालु मिट्टी के दीपक जलाकर “दीपावली ऑफ द गॉड्स” मनाते हैं। कार्तिक व्रत रखने वाले इस दिन गीता गोविंद पाठ करते हुए व्रत का समापन करते हैं।
भारत के अन्य प्रमुख मंदिरों में उत्सव की झलक
अयोध्या : सरयू नदी तट और श्रीराम मंदिर में लाखों दीपक प्रज्वलित किए जाते हैं।
प्रयागराज : त्रिवेणी संगम पर दीपदान और गंगास्नान का विशेष आयोजन होता है।
उज्जैन : महाकालेश्वर मंदिर में रुद्राभिषेक और दीपमाला होती है।
पुष्कर : ब्रह्मा सरोवर पर दीपोत्सव और पुष्कर मेला।
रामेश्वरम और तिरुवन्नामलाई : दक्षिण भारत में इसे “कार्तिक दीपम” कहा जाता है, जहां शिव के प्रतीक अग्निशिखा पर्वत शिखर पर प्रज्वलित की जाती है।
पश्चिम बंगाल के कालीघाट और तारापीठ : यहां भी देवी-देवताओं की आराधना के साथ दीपदान और कार्तिक व्रत का समापन किया जाता है।
सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
देव दीपावली अब केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक एकता और पर्यावरण-सचेतना का प्रतीक बन चुकी है।
प्राकृतिक मिट्टी के दीपक, पुन: प्रयोज्य सजावट और पारंपरिक संगीत-नृत्य के माध्यम से यह उत्सव भारतीय संस्कृति के सौंदर्य को उजागर करता है।
देव दीपावली हमें याद दिलाती है—जो दीप मंदिर में जलता है, वह केवल ईश्वर के लिए नहीं, बल्कि मानवता के मार्ग को भी प्रकाशित करता है।
काशी, पुरी, रामेश्वरम— तीनों पवित्र धाम इस दिन एक ही आलोक में नहाते हैं। यह पर्व हर भारतीय को प्रेरित करता है कि—अंधकार से प्रकाश की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर, और भेदभाव से एकता की ओर बढ़ें।