असमय मरे लोगों का कब, कैसे और कहां किया जाता है पितृ पक्ष में पिंडदान

असमय मरे लोगों का कब, कैसे और कहां किया जाता है पितृ पक्ष में पिंडदान

आश्विन महीने की प्रतिपदा तिथि से अमावस्या तिथि तक की अवधि को पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष कहा जाता है|

आश्विन महीने की प्रतिपदा तिथि से अमावस्या तिथि तक की अवधि को पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष कहा जाता है| इस साल पितृ पक्ष की शुरुआत 7 सितंबर से हो रही है जो कि 21 सितंबर तक चलेगी| इस अवधि में मृत पितरों के निमित्त तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान जैसे काम किए जाते हैं| यह समय पूर्ण रूप से पितरों को समर्पित होता है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस दौरान पितरों का वास धरती पर होता है| गरुड़ पुराण के अनुसार पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त तर्पण या पिंडदान करने से पूर्वज तृप्त होकर अपने वंश को आशीर्वाद देते हैं| साथ ही पूर्वजों की आत्मा को शांति भी मिलती है| यदि पितरों को मोक्ष ना मिले तो पितृ दोष का सामना करना पड़ता है| इसके अलावा पितृ प्रेत योनि में ही भटकते रहते हैं| यही कारण है कि पितृ पक्ष में लोग अपने पितरों का पिंडदान करते हैं| पितृ पक्ष के 15 दिनों की अलग-अलग तिथियो में पितरों का श्राद्ध किया जाता है| 
पितृ पक्ष की शुरुआत होते ही बिहार के गया जी में फल्गु नदी के तट पर लोग पितरों के निमित्त पिंडदान और तर्पण करते हैं| लेकिन बता दें कि जिन लोगों की मृत्यु समय से पहले होती है या अकाल मृत्यु होती है, उनका श्राद्ध फल्गु नदी के तट पर नहीं किया जाता है| ऐसे पितरों का श्राद्ध गया जी के पास स्थित प्रेतशिला पर्वत पर होता है| इस पर्वत के शिखर पर एक वेदी है जो कि प्रेतशिला वेदी के नाम से जानी जाती है| यहां अकाल मृत्यु वाले पितरों का श्राद्ध और पिंडदान किया जाता है लेकिन इस पर्वत पर सूर्यास्त के बाद रुकने पर मनाही है| इसलिए शाम से पहले ही यहां पिंडदान कर लिए जाते हैं|
गरुड़ पुराण के अनुसार, जिन लोगों की मृत्यु समय से पूर्व या अकाल मृत्यु होती है, उनकी आत्मा को शांति नहीं मिलती| लेकिन यदि इनका पिंडदान प्रेतशिला वेदी पर किया जाए तो इन्हें प्रेतयोनि से मुक्ति मिलती है| अकाल मृत्यु या असमय मरे पितरों का पिंडदान तिल या कुश आदि से नहीं किया जाता है| ऐसे पितरों का पिंडदान सत्तू से किया जाता है| श्राद्ध पक्ष में 15 तिथियां होती हैं, जोकि आश्विन माह की प्रतिपदा से अमावस्या तक चलती है| लेकिन आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अकाल मृत्यु वाले पितरों का श्राद्ध कर्म और पिंडदान किया जाता है| हालांकि श्राद्ध कर्म या पिंडदान करने से पहले आपको किसी पंडित या पुरोहित की सलाह अवश्य लेनी चाहिए|

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