31 अगस्त को रखा जाएगा राधाष्टमी का व्रत
राधाष्टमी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है|
नयी दिल्ली : राधाष्टमी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है| माना जाता है कि राधाष्टमी के दिन ही राधा रानी का प्राकट्य हुआ था| इस दिन राधा-कृष्ण की पूजा की जाती है| राधा रानी से जुड़े मंत्रों का जप किया जाता है| उनकी स्तुति की जाती है| राधाष्टमी पर व्रत रखने का भी रिवाज है| इस दिन व्रत रखने से घर में सुख शांति और समृद्धि का वास होता है| पुण्य की प्राप्ति होती है और पापों का नाश होता है| ऐसे में आइये जानते हैं राधाष्टमी कब है और इसका क्या महत्व है|
राधाष्टमी का शुभ मुहूर्त
भाद्रपद शुक्ल अष्टमी तिथि 30 अगस्त रात 10.46 बजे लगेगी और 31 अगस्त को देर रात 12.57 बजे समाप्त होगी| उदया तिथि के चलते 31 अगस्त को राधाष्टमी का व्रत रखा जाएगा| इसके अलावा इस्कॉन में भी 31 अगस्त को हो राधाष्टमी मनाई जाएगी| राधाष्टमी का त्योहार राधा रानी के प्रति असीम श्रद्धा और प्रेम भाव को दर्शान के लिए मनाया जाता है| मध्याह्न काल में पूजा करने का विशेष महत्व है| राधाष्टमी पर मध्याह्न काल 31 अगस्त को सुबह 10.42 बजे से दोपहर 1.14 बजे तक रहेगा| राधाष्टमी को लेकर माना जाता है कि इस दिन राधा रानी को व्रत पूजन से प्रसन्न करने वालों से भगवान कृष्ण खुद-ब-खुद प्रसन्न हो जाते हैं| मान्यता है कि राधाष्टमी के दिन वृषभानुजी और कीर्तिजी के घर पर राधारानी का जन्म हुआ था| एक कथा यह कहती है कि असलियत में राधाजी अपनी मां कीर्तिजी के गर्भ में नहीं थीं बल्कि माया से उनके पेट में वायु को ठहराया गया था और जन्म के समय राधाजी का प्राकट्य हुआ था| वृषभानुजी को पुष्प के बीच से राधाजी प्राप्त हुई थीं| एक कथा इस प्रकार है कि ही रुक्मिणी ही राधाजी का स्वरूप हैं| जब रुक्मिणी का जन्म हुआ था तो एक पक्षी उन्हें उठाकर ले आया था| वृषभानुजी को रुक्मिणी मिली थीं तो उनका नाम राधा रखा गया| इसीलिए राधाजी के 28 नामों में एक नाम रुक्मिणी भी है|