हाई कोर्ट ने फांसी की सजा को 20 साल की सजा में बदला
कहा-न्याय खून का प्यासा नहीं
कलकत्ता हाई कोर्ट की जलपाईगुड़ी सर्किट बेंच ने एक अहम फैसला सुनाते हुए दोषी की फांसी की सजा को 20 साल की सजा में बदल दिया है।
निज संवाददाता : कलकत्ता हाई कोर्ट की जलपाईगुड़ी सर्किट बेंच ने एक अहम फैसला सुनाते हुए दोषी की फांसी की सजा को 20 साल की सजा में बदल दिया है। बेंच ने 22 साल के दोषी आफताब आलम की फांसी की सजा बदल दी है। अब उसे बिना पैरोल के 20 साल जेल में काटने होंगे। बेंच ने आफताब की सजा बदलते समय बड़ी टिप्पणी की। हाई कोर्ट ने कहा कि न्याय खून का प्यासा नहीं होना चाहिए। सजा का मकसद सुधार होना चाहिए, किसी से बदला लेना नहीं। आफताब को अपने मामा मेहताब की हत्या के मामले में सजा हुई थी।
घटना 28 जुलाई 2023 को उत्तरी बंगाल के धूपगुड़ी में हुई। आफताब ने अपने मामा के घर में लूटपाट करने की कोशिश की थी। इस दौरान उसने अपने मामा की हत्या कर दी। निचली अदालत ने आफताब को फांसी की सजा सुनाई थी। कोर्ट ने कहा था कि आफताब ने उस आदमी के साथ विश्वासघात किया जिसने उसके पिता की मौत के बाद उसे पाला-पोसा था।
कलकत्ता हाई कोर्ट की बेंच ने कहा कि निचली अदालत ने तथ्यों से ज्यादा भावनाओं पर ध्यान दिया। जस्टिस सब्यसाची भट्टाचार्य और उदय कुमार की बेंच ने आफताब के मामले में 1 अगस्त को फैसला सुनाया। यह फैसला 47 पन्नों का है। बेंच ने कहा कि निचली अदालत यह साबित करने में नाकाम रही कि आफताब को फांसी की सजा क्यों दी। जबकि फांसी के लिए अपराध का दुर्लभतम श्रेणी का होना जरूरी होता है।
बेंच ने लिखा कि जेलों के नाम प्रिजन से बदलकर सुधार गृह रखा गया है। यह यूं ही नहीं किया गया, इसके पीछे मकसद है। यह समाज की बदला लेने की प्रवृत्ति से हटकर एक सभ्य नीति की ओर बदलाव को दर्शाता है। बेंच ने एक और बड़ी बात कही कि हमें अपराध से नफरत करनी चाहिए, अपराधी से नहीं।
बेंच ने कहा कि आफताब सालों से अपने मामा के साथ नहीं रहता था। वह मामा के घर धूपगुड़ी लौटने से पहले नई दिल्ली चला गया था, इसलिए विश्वासघात जैसा दृष्टिकोण लागू नहीं होता। निचली अदालत ने जो विश्वासघात की बात कही है उसके कोई सबूत नहीं हैं। बेंच ने कहा कि अपराध के समय आरोपी अपने मामा के घर से बहुत दूर था और जब उसने अपराध किया तब वह उनकी देखरेख में नहीं था।
आफताब ने मेहताब की सोते समय चाकू मारकर हत्या की थी। उनकी पत्नी मौमिता हमले में बच गई थीं। अपराध के समय आफताब के साथ पांच और लोग भी थे, वे सभी नाबालिग थे। बेंच ने कहा कि हत्या अचानक हुई प्रतिक्रिया लगती है। यह बदला लेने या प्लानिंग के साथ किया गया क्राइम नहीं। कोर्ट ने इस बात का भी हवाला दिया कि आफताब ने लूट से पहले अपने मामा के घर के पास एक होटल में कमरा लिया था। उसने वहां अपना ही आधार कार्ड दिया था।
निचली अदालत ने आफताब को एक एक्सपीरिएंस्ड क्रिमिनल बताया। हाई कोर्ट ने इसे भी खारिज कर दिया। बेंच ने कहा कि उसने जो किया वह एक अनप्रफेशनल की तरह किया। इस तरह का क्राइम कोई अपरिपक्व अपराधी ही कर सकता है। बेंच ने कहा कि मुकदमे के दौरान आरोपी के हाव-भाव में पछतावे की कमी यह नहीं दिखाती कि उसमें सुधार नहीं हो सकता।