मुख्यमंत्री के निर्देश पर तृणमूल कांग्रेस का डीवीसी के मैथन कार्यालय पर विरोध प्रदर्शन
दामोदर वैली कॉरपोरेशन (डीवीसी) द्वारा पानी छोड़ने पर राज्य में राजनीतिक तापमान बढ़ा
माइथन ( आसनसोल): दामोदर वैली कॉरपोरेशन (डीवीसी) के डैम से पानी छोड़ने को लेकर पूरे राज्य में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के निर्देश पर मंगलवार सुबह से पश्चिम बर्धमान जिले की तृणमूल कांग्रेस माइथन स्थित डीवीसी कार्यालय घेरकर विरोध प्रदर्शन कर रही है। इस कार्यक्रम का नेतृत्व राज्य के श्रम मंत्री मलय घटक कर रहे हैं। उनके साथ जिले के तृणमूल कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के पदाधिकारी भी मौजूद हैं।
तृणमूल कांग्रेस का आरोप है कि डीवीसी राज्य प्रशासन को जानकारी दिए बिना मैथन और पंचेत बांध से भारी मात्रा में जल छोड़ रहा है, जिससे पश्चिम बंगाल के कई जिले बाढ़ की स्थिति में हैं। पार्टी ने कहा कि त्योहारों के मौसम में जनता को खतरे में डालने के लिए डीवीसी जिम्मेदार है।
मैथन डीवीसी कार्यालय के बाहर बना तृणमूल कांग्रेस के विरोध मंच से तृणमूल नेता बोले, “डीवीसी बार-बार राज्य को अंधेरे में रखकर जल छोड़ रहा है। इसके कारण हजारों परिवार प्रभावित हो रहे हैं। जनता की सुरक्षा के लिए हम आज सड़क पर हैं।
विरोध प्रदर्शन के दौरान मैथन में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था बनाई गई है। स्थानीय प्रशासन ने बताया कि स्थिति नियंत्रण से बाहर न जाए, इसके लिए अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात किए गए हैं। हालांकि, तृणमूल नेतृत्व का कहना है कि यह प्रदर्शन पूरी तरह शांतिपूर्ण है।
मलय घटक ने कहा, “हमारा उद्देश्य संघर्ष नहीं है। हम केवल राज्यवासियों की पीड़ा और असंतोष को डीवीसी प्रशासन तक पहुंचाना चाहते हैं।
वहीं, डीवीसी ने दावा किया है कि बांधों का जलस्तर खतरे के निशान तक पहुंच गया था, इसलिए मजबूरी में जल छोड़ा गया। डीवीसी के अनुसार, “पानी छोड़ना पूरी तरह वैज्ञानिक और नियंत्रित प्रक्रिया से किया गया। मुख्यमंत्री द्वारा बताए गए 1.5 लाख क्यूसेक की जगह करीब 70 हजार क्यूसेक जल छोड़ा गया।”
राज्य प्रशासन का कहना है कि पूर्व चेतावनी न मिलने के कारण दामोदर घाटी के निचले हिस्सों में बाढ़ का खतरा उत्पन्न हुआ। नवान्न ( राज्य सचिवालय )ने तत्काल बैठक बुलाकर जिला प्रशासन को राहत शिविर तैयार रखने के निर्देश दिए हैं।
राज्य और केंद्र के इस टकराव के बीच, माइथन में तृणमूल कांग्रेस का विरोध प्रदर्शन जारी है। अब सवाल यह है कि यह जल-राजनीति कहाँ तक जाएगी।