2024 से पहले आए पश्चिम बंगाल के मतुआ समुदाय सीएए के तहत कर सकेंगे नागरिकता के लिए आवेदन
केंद्र सरकार के फैसले से मिली बड़ी राहत
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के एक फैसले से पश्चिम बंगाल के मतुआ समुदाय की नागरिकता संबंधित टेंशन खत्म हो गई।
निज संवाददाता : केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के एक फैसले से पश्चिम बंगाल के मतुआ समुदाय की नागरिकता संबंधित टेंशन खत्म हो गई। इस फैसले के बाद मतुआ समुदाय के अधिकतर लोग भारतीय नागरिकता के योग्य हो जाएंगे। दरअसल केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय ने इमिग्रेशन एंड फॉरेनर्स एग्जेंप्शन ऑर्डर 2025' जारी किया है, जिसमें 31 दिसंबर 2024 से पहले भारत आए मतुआ समुदाय के लोगों को सीएए के तहत नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है। माना जा रहा है कि इस फैसले से 2026 में होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के समीकरण में उलटफेर हो सकता है।
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के तहत नियम है कि 31 दिसंबर 2014 से पहले धार्मिक उत्पीड़न के कारण अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए अल्पसंख्यक जैसे हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई भारत की नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। इस नियम से पश्चिम बंगाल के मतुआ समुदाय के लोग परेशान थे, क्योंकि 2014 के बाद आए हिंदुओं पर वापस बांग्लादेश लौटने का खतरा मंडरा रहा था। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक केंद्रीय गृह मंत्रालय मतुआ समुदाय के लिए अवधि में संशोधन किया है। अब धार्मिक उत्पीड़न के कारण 31 दिसंबर, 2024 तक भारत आने वाले लोग बिना वैध दस्तावेजों के भी भारत में रह सकते हैं। इसके अलावा उन लोगों को भी राहत मिलेगी, जिनके पास वैध दस्तावेज थे, लेकिन उनकी वैधता समाप्त हो गई है।
तृणमूल कांग्रेस के सांसद साकेत गोखले ने सरकार के इस फैसले को निराधार बताया है। उन्होंने एक्स पर पोस्ट में लिखा कि एक केंद्रीय मंत्री बेशर्मी से झूठी खबर फैला रहे हैं । उन्होंने दावा किया कि सीएए के तहत कट-ऑफ डेट 2014 ही है। उनका कहना है कि इस तिथि को केवल संसद में संशोधन करके बदला जा सकता है। उनका कहना है कि सीएए के नियमों में कोई बदलाव नहीं हुआ है। ऑल इंडिया मतुआ महासंघ के महासचिव महातोष बैद्य ने इस फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि कट-ऑफ बढ़ाने की एक लंबी मांग थी। 2014 से 2024 तक बांग्लादेश की स्थिति और हिंदुओं पर हो रहे हमलों के कारण इस पर विचार करना जरूरी था। अगस्त 2024 में जिस तरह बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार को उखाड़ फेंका गया। फिर बांग्लादेश में हिंदू समुदाय और मतुआ पर अत्याचार बढ़े हैं। उसे देखते हुए यह बदलाव बहुत जरूरी था।