उम्र की पुष्टि के बाद ही दी जाए ऑनलाइन कंटेंट तक पहुंच

सुप्रीम कोर्ट ने दिया सुझाव

उम्र की पुष्टि के बाद ही दी जाए ऑनलाइन कंटेंट तक पहुंच

निज संवाददाता : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इंटरनेट पर उपलब्ध अश्लील या वयस्क प्रकृति की सामग्री से बच्चों को दूर रखने के लिए आधार नंबर से उम्र की पुष्टि करने पर विचार किया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह टिप्पणी उस मामले को सुनते हुए की जिसमें वह कॉमेडियंस और पॉडकास्टर्स की तरफ से पेश की जा रही आपत्तिजनक सामग्री के मसले पर विचार कर रहा है।

सुप्रीम कोर्ट में यह मामला इस साल फरवरी में पहुंचा था। 'इंडियाज गॉट लैटेंट' शो में की गई अश्लील कॉमेडी के लिए कई राज्यों में एफआईआर दर्ज होने के बाद कॉमेडियन रणवीर इलाहाबादिया सुप्रीम कोर्ट आए थे। इसी तरह के मामले में कॉमेडियन आशीष चंचलानी, अपूर्वा मखीजा, जसप्रीत सिंह और समय रैना पर भी केस हुए। उन्होंने भी राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने रणवीर को गिरफ्तारी से राहत दी, लेकिन कड़ी फटकार लगाने के बाद। 18 फरवरी को हुई सुनवाई में मामले का दायरा व्यापक करते हुए कहा था-हम इस महत्वपूर्ण विषय की उपेक्षा नहीं कर सकते। यूट्यूब चैनल और दूसरे प्लेटफॉर्म पर यह क्या हो रहा है? सरकार बताए कि वह ऐसे मामलों को लेकर क्या कर रही है?

गुरुवार, 27 नवंबर को मामला चीफ जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जयमाल्या बागची की बेंच ने सुना। कोर्ट ने कहा-इस तरह के कंटेंट से पहले कई बार चेतावनी आती है, लेकिन वह नाकाफी है। स्पष्ट चेतावनी और उपयुक्त नियंत्रण जरूरी हैं। हमारा सुझाव है कि कुछ सेकंड चेतावनी चलने के बाद आधार या किसी और तरीके से आयु की पुष्टि हो। इसके बाद ही कार्यक्रम शुरू हो।

सुनवाई में केंद्र सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने माना कि यूजर जेनरेटेड कंटेंट (अपने यूट्यूब चैनल/पेज पर खुद बना कर डाली गई सामग्री) के नियमन को लेकर अभी कुछ कमी है। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा-कोई अपना यूट्यूब चैनल बना कर उसमें बेरोकटोक कुछ भी डालेगा? यह नहीं चल सकता। एक स्वायत्त नियामक संस्था के गठन की जरूरत है, जो इस पर लगाम लगा सके।

इसके बाद सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि इंटरनेट और सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री को लेकर दिशानिर्देश बनाए जा रहे हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि सरकार उन दिशानिर्देशों को सार्वजनिक करे। लोगों की राय भी इस विषय पर ली जाए। इसके बाद उन्हें अंतिम रूप दिया जाए। मामले की अगली सुनवाई 4 सप्ताह बाद होगी।

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