सीबीआई ने कलकत्ता हाईकोर्ट से समय मांगा,
पार्थ की जमानत याचिका स्थगित
कलकत्ता हाईकोर्ट ने भर्ती भ्रष्टाचार मामले में राज्य के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी की जमानत याचिका पर बुधवार को फैसला नहीं सुनाया। हालांकि, बुधवार को न्यायमूर्ति शुभ्रा घोष की पीठ द्वारा मामले की सुनवाई होनी थी, लेकिन इसे फिर से स्थगित कर दिया गया।
निज संवाददाता : कलकत्ता हाईकोर्ट ने भर्ती भ्रष्टाचार मामले में राज्य के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी की जमानत याचिका पर बुधवार को फैसला नहीं सुनाया। हालांकि, बुधवार को न्यायमूर्ति शुभ्रा घोष की पीठ द्वारा मामले की सुनवाई होनी थी, लेकिन इसे फिर से स्थगित कर दिया गया। सुनवाई शुरू होते ही केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई ने अदालत से अतिरिक्त समय मांगा।उन्होंने दावा किया कि इस मामले की महत्वपूर्ण सुनवाई में केंद्र के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल की उपस्थिति आवश्यक है।लेकिन वह उस दिन उपस्थित नहीं हो पा रहे हैं। इसलिए तैयारी के लिए कुछ समय दिया जाए। न्यायाधीश ने सीबीआई केअनुरोध को स्वीकार करते हुए सुनवाई स्थगित कर दी और 1 सितंबर की नई तारीख तय की।
मालूम हो कि पार्थ चटर्जी के खिलाफ भर्ती भ्रष्टाचार का मामला मूल रूप से जुलाई 2022 में सामने आया था। प्राथमिकशिक्षकों की भर्ती में अनियमितताओं के आरोप में ईडी ने उनके आवास और उनकी कथित महिला दोस्त अर्पिता मुखर्जी के फ्लैट की तलाशी ली थी। अर्पिता के घर से 50 करोड़ से अधिक की नकदी का ढेर बरामद हुआ था। साथ ही सोने के गहने और कई कीमती सामान भी। उस घटना के बाद पार्थ और अर्पिता को गिरफ्तार कर लिया गया था। प्राथमिक शिक्षक भर्ती ही नहीं, बल्कि बाद में ग्रुप सी और ग्रुप डी के पदों पर भर्ती से जुड़े कई मामलों में भी पार्थ का नाम आया।
ईडी के साथ-साथ सीबीआई ने भी इस मामले में अलग से जांच शुरू की। उनका आरोप था कि भर्ती प्रक्रिया में अनियमितताओं और रिश्वतखोरी में पूर्व शिक्षा मंत्री की सीधी भूमिका थी। सीबीआई ने भी इसी आधार पर उन्हें गिरफ्तार किया। गिरफ्तारी के बाद से लगभग तीन साल से जेल में बंद पार्थ ने कई बार अदालत से ज़मानत पाने की कोशिश की है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल दिसंबर में ईडी मामले में उन्हें ज़मानत दे दी थी, लेकिन सीबीआई द्वारा दर्ज मामले में उन्हें अभी तक रिहा नहीं किया गया है।
पार्थ चटर्जी ने सभी आरोपों का खंडन किया है और दावा किया है कि उन्हें राजनीतिक उद्देश्यों के लिए फंसाया गया है। उनकी कानूनी टीम ने बार-बार तर्क दिया है कि जांच पूरी होने में इतना समय नहीं लगना चाहिए था और वह ज़मानत के हकदार हैं। हालांकि, सीबीआई का दावा है कि इस मामले में सबूतों की जटिलता और मात्रा इतनी ज़्यादा है कि सभी पहलुओं की जांच होने तक ज़मानत देने से जांच में बाधा आ सकती है। कानूनी और राजनीतिक हलकों की नजर अब 1 सितंबर को होने वाली सुनवाई पर है।