दुर्गोत्सव के इतिहास पर प्रोफेसर सोमशंकर राय का अंग्रेज़ी उपन्यास प्रकाशित
शारद उत्सव के मौके पर प्रोफेसर सोमशंकर राय का अंग्रेज़ी उपन्यास “दुर्गोत्सव (द फेस्टिवल आफ गाड्स दुर्गा)-अ टेल आफ योर” प्रकाशित हुआ।
निज संवाददाता : शारद उत्सव के मौके पर प्रोफेसर सोमशंकर राय का अंग्रेज़ी उपन्यास “दुर्गोत्सव (द फेस्टिवल आफ गाड्स दुर्गा)-अ टेल आफ योर” प्रकाशित हुआ। उपन्यास का मुख्य विषय है—देवी दुर्गा की पूजा की उत्पत्ति और समय के साथ उसका एक राष्ट्रीय उत्सव के रूप में विकसित होना। आज दुर्गा पूजा केवल बंगाल ही नहीं, बल्कि भारत के प्रमुखतम त्योहारों में से एक है, जिसका समापन विजयादशमी के साथ होता है और जिसे देशभर में दशहरा के रूप में मनाया जाता है।
कथा और पुराणों में भी उल्लेख मिलता है कि रामचंद्र से लेकर अर्जुन तक—महाकाव्यिक वीरों ने देवी दुर्गा की आराधना की थी। इसीलिए दुर्गोत्सव को मिलन, सद्भावना, भाईचारे और सहिष्णुता का प्रतीक माना जाता है। हाल ही में इस उत्सव को यूनेस्को की मान्यता मिलने से विश्व पटल पर इसकी प्रतिष्ठा और भी बढ़ गई है।
उपन्यास में कोलकाता का इतिहास-प्रेमी किशोर सुष्मित के दृष्टिकोण से पाठक दुर्गा पूजा की उत्पत्ति और मध्ययुगीन बंगाल की सांस्कृतिक परंपराओं को जान पाते हैं। उसके पिता के मित्र सोना जेठू (ताऊ जी) से गौड़ और बरेंद्र क्षेत्र की कथाएं, मालदा नगर की स्मृतियां और राजा कंसनारायण द्वारा आयोजित दुर्गोत्सव की ऐतिहासिक कड़ी सामने आती है। इन्हीं सूत्रों से दुर्गा पूजा की एक समृद्ध परंपरा का निर्माण हुआ, जो आज भी उल्लास और वैभव के साथ मनाई जाती है।
ऐतिहासिक शोध पर आधारित इस उपन्यास में देशज किंवदंतियों, लोककथाओं और उपाख्यानों के साथ-साथ लेखक द्वारा संकलित स्थानीय जानकारियां भी शामिल हैं। बरेंद्र क्षेत्र के बुज़ुर्गों और विद्वानों से किए गए साक्षात्कारों ने उपन्यास को और अधिक प्रमाणिक और विश्वसनीय बनाया है। मूल पाठ के साथ बंगाल का एक प्राचीन मानचित्र और विस्तृत ग्रंथसूची भी संलग्न की गई है, जो पाठक के अनुभव को और समृद्ध करती है।
हाल ही में मोहता पब्लिशिंग हाउस से प्रकाशित यह कृति निश्चय ही इतिहास-प्रेमी पाठकों और उत्सव-प्रेमियों द्वारा सराही जाएगी।