लाहौर का सबसे बड़ा साहूकार बुलाकी शाह

एक भूले-बिसरे इतिहास का पुनर्जागरण

लाहौर का सबसे बड़ा साहूकार बुलाकी शाह

लाहौर के मशहूर साहूकार बुलाकी शाह: विभाजन की त्रासदी से बिखरी एक कहानी लाहौर के इतिहास में बुलाकी शाह का नाम एक ऐसे साहूकार के रूप में दर्ज है, जो सिर्फ दौलत के लिए नहीं, बल्कि अपनी सूझबूझ और लोगों के प्रति अपने व्यवहार के लिए जाने जाते थे। उनका कारोबार इतना बड़ा था कि अमीर ज़मींदारों से लेकर आम मेहनतकश लोग और महिलाएं तक आर्थिक मदद के लिए उनके पास आते थे।

लाहौर के सबसे बड़े साहूकार बुलाकी शाह: खौफ, अमीरी और उनकी अनसुनी दास्तान

लाहौर के इतिहास में कुछ कहानियाँ ऐसी हैं जो समय के साथ फीकी नहीं पड़तीं, बल्कि और भी गहरी हो जाती हैं। ऐसी ही एक कहानी है बुलाकी शाह की, एक ऐसे साहूकार की, जिनका नाम सुनकर लोग खौफ भी खाते थे और सम्मान भी करते थे। हाल ही में एक किताब में उनके बारे में छपे किस्सों ने इंटरनेट पर हलचल मचा दी है, और हर कोई जानना चाहता है कि यह शख्स कौन था और उनकी जिंदगी कैसी थी।

इतिहास के बड़े साहूकार

लाहौर में जब भी किसी को पैसों की जरूरत होती थी, चाहे वह अमीर ज़मींदार हो या कोई आम आदमी, हर कोई बुलाकी शाह के पास ही आता था। वह सिर्फ एक साहूकार नहीं थे, बल्कि सामाजिक ताने-बाने का एक अहम हिस्सा थे। उनकी सबसे खास बात यह थी कि वे महिलाओं को बहुत इज्जत देते थे। उनके दफ्तर में महिलाओं के लिए अलग से बैठने की व्यवस्था थी, जहाँ वे बिना किसी झिझक के अपनी जरूरतें बता सकती थीं। अगर कोई गहना गिरवी रखकर कर्ज लेता था, तो वह बिना किसी शक के तुरंत रकम दे देते थे।

उनकी अमीरी का आलम

बुलाकी शाह की अमीरी सिर्फ उनके पास मौजूद दौलत से नहीं, बल्कि उनकी समझदारी और सख्त मिजाज से भी झलकती थी। एक बार जब उन्हें पता चला कि उनका बेटा टबी बाजार में नाच-गाने पर बहुत पैसे उड़ा रहा है, तो वे खुद वहाँ पहुँच गए। जहाँ बेटा एक रुपया खर्च करता, बुलाकी शाह तुरंत दो रुपये खर्च कर देते। धीरे-धीरे बेटे को यह एहसास हो गया कि वहाँ कोई उसकी इज्जत नहीं करता, सिर्फ दौलत देखता है। इसके बाद उसने टबी बाजार जाना छोड़ दिया। जब बाजार के व्यापारियों ने बुलाकी शाह से अपने बेटे को वापस भेजने की मिन्नत की, तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया, यहाँ तक कि नुकसान की भरपाई में दी गई रकम भी वापस कर दी।

उनकी नजरों का खौफ

बुलाकी शाह का खौफ इतना था कि उनकी हवेली के सामने से गुजरने वाला हर शख्स सिर झुकाकर उन्हें सलाम करता था। यहाँ तक कि बच्चे भी उनके नाम से सहम जाते थे। कहते हैं कि अगर उनकी नजर किसी बच्चे पर पड़ जाती, तो बच्चा डर के मारे वहीं पेशाब कर देता था। लेकिन बुलाकी शाह हमेशा सलाम का जवाब हँसते हुए देते और उन्हें आशीर्वाद देते थे। उनकी सख्ती का आलम यह भी था कि कई बार जमीन से जुड़े मामलों में उन्हें अदालत का रुख भी करना पड़ा, और उन्होंने हर बार अपनी सूझबूझ और कानूनी पकड़ से जीत हासिल की।

विभाजन की त्रासदी और बदलती जिंदगी

1947 में हुए भारत-पाकिस्तान के विभाजन ने बुलाकी शाह की जिंदगी पूरी तरह बदल दी। दंगों में उनके एक बेटे की हत्या हो गई, जिससे वे अंदर से टूट गए। इस सदमे के कारण उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया। कहा जाता है कि उनके बहीखातों के पन्ने लाहौर की गलियों में बिखरे पड़े थे। विभाजन के बाद उनके कई कर्जदार पाकिस्तान में ही रह गए, जिससे उनकी बहुत सी रकम डूब गई।

आज लाहौर के गुमटी बाजार में उनकी आलीशान हवेली सिर्फ एक खंडहर बनकर रह गई है, जहाँ अब जूते और केमिकल की दुकानें चलती हैं। बुलाकी शाह का नाम अब सिर्फ कहानियों और पुरानी यादों में ही जिंदा है। वह एक ऐसे शख्स थे जिन्होंने अपनी जिंदगी में दौलत, खौफ और सम्मान, सब कुछ देखा।
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