हिंदू धर्म में रात में क्यों नहीं होता अंतिम संस्कार? गरुड़ पुराण में छिपा है इसका रहस्य!

 हिंदू धर्म में रात में क्यों नहीं होता अंतिम संस्कार? गरुड़ पुराण में छिपा है इसका रहस्य!

हिंदू धर्म में जब कभी भी किसी की मृत्यु होती है, तो उसका दाह संस्कार हमेशा सूर्यास्त से पहले ही किया जाता है. लेकिन सूर्यास्त के बाद दाह संस्कार करने की मनाही क्यों होती है?

हिंदू धर्म में, किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके अंतिम संस्कार को एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान माना गया है। गरुड़ पुराण जैसे धर्मग्रंथों में इस क्रिया को लेकर कई नियम बताए गए हैं, जिनमें से एक नियम यह है कि सूर्यास्त के बाद शव का दाह संस्कार नहीं किया जाना चाहिए। आइए जानते हैं इसके पीछे की वजहें क्या हैं।

रात में अंतिम संस्कार न करने के कारण

हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, सूर्यास्त के बाद अंतिम संस्कार न करने के कई कारण हैं:

  • स्वर्ग और नर्क के द्वार: ऐसा माना जाता है कि सूर्यास्त के बाद स्वर्ग के द्वार बंद हो जाते हैं और नर्क के द्वार खुल जाते हैं। अगर रात में अंतिम संस्कार किया जाता है, तो संभव है कि मृतक की आत्मा को नर्क में जाना पड़े।

  • आत्मा का भटकना: मान्यता है कि जब तक शव का दाह संस्कार नहीं होता, तब तक आत्मा शरीर के आस-पास ही भटकती रहती है। रात के समय दाह संस्कार करने से आत्मा को मोक्ष मिलने में परेशानी हो सकती है।

  • अगले जन्म में दोष: यह भी माना जाता है कि रात में अंतिम संस्कार करने से व्यक्ति के अगले जन्म में किसी शारीरिक अंग में दोष या विकृति आ सकती है।

  • अपूर्ण कर्म: अंतिम संस्कार में सभी रीति-रिवाजों और मंत्रों का सही से पालन होना ज़रूरी है। रात के अंधेरे में इन क्रियाओं को पूरी तरह से करना मुश्किल हो सकता है, जिससे यह संस्कार अधूरा माना जा सकता है।

महिलाओं को मुखाग्नि देने का अधिकार क्यों नहीं?

गरुड़ पुराण के अनुसार, किसी महिला को मुखाग्नि देने का अधिकार नहीं होता है। यह अधिकार केवल पुरुष सदस्यों जैसे कि पुत्र, भतीजा, पति या पिता को ही होता है। इसके पीछे की मुख्य वजह यह है कि:

  • वंश वृद्धि की परंपरा: हिंदू धर्म में मुखाग्नि देने का अधिकार वंश के उत्तराधिकारी को दिया गया है, और वंश वृद्धि का जिम्मा पुरुषों पर होता है। इसीलिए, यह जिम्मेदारी पुत्र या अन्य पुरुष सदस्यों को दी जाती है।

  • स्त्रियों का कोमल स्वभाव: यह भी माना जाता है कि महिलाएं भावनात्मक रूप से अधिक संवेदनशील होती हैं और ऐसे दुख भरे माहौल को संभालना उनके लिए मुश्किल होता है।

इन धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं के चलते, हिंदू धर्म में सूर्यास्त के बाद अंतिम संस्कार नहीं किया जाता, और मुखाग्नि की परंपरा पुरुषों द्वारा ही निभाई जाती है।
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